जिनके दम से रोशनाई है...........
जिनसे बरसों की शनाशाई है......
जिनकी खातिर सुखनवराई है....
जिनकी सौगात ये तन्हाई है .....

संजय महापात्र "काफिर"

रविवार, 18 सितंबर 2011

मुझ पर यकीं नहीं

कमबख्त मेरी कलम मेरी मानती नहीं
ये और बात है तुम्हे मुझ पर यकी नहीं  

जब भी मिला मुझसे सीधे गले मिला
पीठ पर ये खंजर उसी का तो कही नहीं  

शब भर चला दौर जहन्नुम-ओ-बहिश्त में
मैं वहाँ भी नहीं था मैँ यहाँ भी नहीं  

दीवानगी को मेरे तुम न समझ पाओगे
दानिश की किताब में हर्फ-ए-इश्क ही नहीँ  

दयरोहरम में खोजा “काफिर” तमाम उम्र
मैकदे मे जो मिला वही तो कही नहीं

3 टिप्‍पणियां:

  1. भाई उर्दू के शब्दो का अर्थ भी दे दिया करो साथ में काफ़िरो की बात आसानी से उतरती नही

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  2. बहुत खूब...काबिले तारीफ लिखा है.

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  3. बहुत खूब संजय भाई..........मज़ा आ गया पढ़ कर......

    आपकी सोहबत में थोडा सीख लेंगे हैं.....
    वर्ना ये सच है हमको आती आशिकी नहीं....

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