जिनके दम से रोशनाई है...........
जिनसे बरसों की शनाशाई है......
जिनकी खातिर सुखनवराई है....
जिनकी सौगात ये तन्हाई है .....

संजय महापात्र "काफिर"

सोमवार, 22 अगस्त 2011

यूँ ही बेसबब ...


जिसकी जैसी फितरत वैसी उसकी चाल
कौवों से उम्मीद करे हैं हंसो सी हो चाल  

लोकतंत्र की आड़ में खुल्ले छुट्टे साँड
घोड़ों को फाके पड़े हैं गधें उड़ाये माल  

कैसा अजब तमाशा कैसी नूरा कुश्ती
कोई हारे कोई जीते जनता हुई हलाल  

काले धन वीसा लेकर स्विस मेहमान हुए
कर्ज बोझ से देश दबा जनता बनी हमाल  

तीन शिकार तो कर चुकी है टूजी की गुगली
चित्तभरम क्या तू है चौथा मन में यही सवाल  

किसके आगे दुखड़ा रोयें किससे करें सवाल
नेता बन गये इस देश में भाड़े के दलाल