श्री सम्पूरन सिंह कालरा जिन्हे लोग "गुलजार" के नाम से जानते हैं इक उम्दा और सादगी भरे अंदाज से अपनी बात कहने वाले कमाल के शायर हैं उनका तीन मिसरों में बात कहने का नायाब अंदाज जिसे उन्होने त्रिवेणी कहा, मुझे बेहतरीन लगा !
उनके इसी अंदाज "त्रिवेणी" मे अर्ज किया है जिसमें दो मिसरों में अपनी बात है और तीसरे मिसरे में उसकी तसव्वुफ़ मिसाल पेश करने की कोशिश की है !
जेर-ए-गौर पेश-ए-खिदमत --
उनके इसी अंदाज "त्रिवेणी" मे अर्ज किया है जिसमें दो मिसरों में अपनी बात है और तीसरे मिसरे में उसकी तसव्वुफ़ मिसाल पेश करने की कोशिश की है !
जेर-ए-गौर पेश-ए-खिदमत --
=1=
मैंने कब माँगी थी उम्र जलवों में बसर
साथ उसका छूटा तो ये हाल है अब
साथ उसका छूटा तो ये हाल है अब
अजनबी शहर हो और जेब में पैसे भी नही
=2=
जब बुलंदी पे था तो हजारों हाथ उठे
गर्दिश-ए-दौराँ में सब साथ छोड़ चले
गर्दिश-ए-दौराँ में सब साथ छोड़ चले
दोपहर के धूप में साया भी सिमट जाता है
=3=
तेरे चेहरे में थी क्यूँ समुंदर सी गहराई
आँख से तेरी सूरत टपक कर लब पे पड़ी
आब-ए-बहर नमकीन ही तो लगता है
=4=
लोग कुछ ढूँढते जब भी इस गली आयें
क्यूँ मेरे घर के आस्ताँ पे ठहर जायें
क्यूँ मेरे घर के आस्ताँ पे ठहर जायें
मेरी हाथों में लकीरो के सिवा कुछ ना था
=5=
वो कल ताउम्र साथ चलने का दम भरता था
आज कोठी के साये में मेरी झोपड़ी खटकती है
मखमली चादर पे टाट के पैबंद लगाये नही जाते
आज कोठी के साये में मेरी झोपड़ी खटकती है
मखमली चादर पे टाट के पैबंद लगाये नही जाते
=6=
वो मेरे साथ था तो सेहरा मे अब्र सा एहसास
बिछड़ गया तो चेहरा भी मुरझाने लगा
शजर से साख टूट जाये तो पत्ते भी सूख जाते हैं
==7==
रात की तन्हाई में ये सिसकियाँ किसकी है
मजलिस में तो वो शख्स मुस्कुराता मिला था
सूरज की रोशनी में ओस की बूँदे काफूर हो जाती है
बेहतरीन शेयरिंग ...शुक्रिया.
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छा लिखा है आपने..बधाइयाँ...
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