जिनके दम से रोशनाई है...........
जिनसे बरसों की शनाशाई है......
जिनकी खातिर सुखनवराई है....
जिनकी सौगात ये तन्हाई है .....

संजय महापात्र "काफिर"

गुरुवार, 29 दिसंबर 2011

कैसा लगता है

हम भी तेरे दिल भी तेरा कैसा  लगता है
मेरी  नजर से  तुझको सलाम कैसा  लगता है 

समंदर का किनारा  और तेज हवायें
तेरे गले में मेरी  बाँहे कैसा  लगता है 

इक दूजे से दूर गर हो जायें हम कभी
सोचो जरा तुम उस आलम को कैसा  लगता है

तेरी अदा का  कायल जहाँ में हरेक शख्श
सारी  दुनिया तेरी  गुलाम कैसा  लगता है 

किसी महफिल में मंजर-ए-आम पर
तेरी जुबाँ से "काफिर" की गजलें कैसा  लगता है

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