जिनके दम से रोशनाई है...........
जिनसे बरसों की शनाशाई है......
जिनकी खातिर सुखनवराई है....
जिनकी सौगात ये तन्हाई है .....

संजय महापात्र "काफिर"

मंगलवार, 3 जनवरी 2012

गम-ए-जहाँ

वाह क्या होशियार हम निकले
खूँ मेरा करके मसीहा निकले


बने फिरते हैं जो कोतवाल-ए-शहर
उन्ही के दस्ताने रंगे हुए निकले


जिनका दावा था हैं चिराग-ए-शहर  
उन्ही के आशियानों से अंधेरे निकले


जुबाँ खामोश और आँखे बड़बड़ाती थी
मेरी रूखसती पर यूँ पारसाँ निकले  


मुझे जो सरेबज्म “काफिर” कहा करते थे
उन्हे ही कोसते कल खुदा निकले

1 टिप्पणी:

  1. बहुत ख़ूब संजय भाई!

    "हज़ारों ख़्वाहिशें ऐसीं के हर ख़्वाहिश पे दम निकले..."...पर फिर भी नीचे कठिन शब्दों के मायने भी लिख दिया करिए। शुक्रिया...

    मनीष वर्मा...

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