हम भी तेरे दिल भी तेरा कैसा लगता है
मेरी नजर से तुझको सलाम कैसा लगता है
समंदर का किनारा और तेज हवायें
तेरे गले में मेरी बाँहे कैसा लगता है
इक दूजे से दूर गर हो जायें हम कभी
सोचो जरा तुम उस आलम को कैसा लगता है
तेरी अदा का कायल जहाँ में हरेक शख्श
सारी दुनिया तेरी गुलाम कैसा लगता है
किसी महफिल में मंजर-ए-आम पर
तेरी जुबाँ से "काफिर" की गजलें कैसा लगता है