जिनके दम से रोशनाई है...........
जिनसे बरसों की शनाशाई है......
जिनकी खातिर सुखनवराई है....
जिनकी सौगात ये तन्हाई है .....

संजय महापात्र "काफिर"

रविवार, 18 सितंबर 2011

मुझ पर यकीं नहीं

कमबख्त मेरी कलम मेरी मानती नहीं
ये और बात है तुम्हे मुझ पर यकी नहीं  

जब भी मिला मुझसे सीधे गले मिला
पीठ पर ये खंजर उसी का तो कही नहीं  

शब भर चला दौर जहन्नुम-ओ-बहिश्त में
मैं वहाँ भी नहीं था मैँ यहाँ भी नहीं  

दीवानगी को मेरे तुम न समझ पाओगे
दानिश की किताब में हर्फ-ए-इश्क ही नहीँ  

दयरोहरम में खोजा “काफिर” तमाम उम्र
मैकदे मे जो मिला वही तो कही नहीं

शुक्रवार, 9 सितंबर 2011

कुछ त्रिवेणीयाँ ....

श्री सम्पूरन सिंह कालरा जिन्हे लोग "गुलजार" के नाम से जानते हैं इक उम्दा और सादगी भरे अंदाज से अपनी बात कहने वाले कमाल के शायर हैं उनका तीन मिसरों में बात कहने का नायाब अंदाज जिसे उन्होने त्रिवेणी कहा, मुझे बेहतरीन लगा !
उनके इसी अंदाज "त्रिवेणी" मे अर्ज किया है जिसमें दो मिसरों में अपनी बात है और तीसरे मिसरे में उसकी तसव्वुफ़ मिसाल पेश करने की कोशिश की है !
 जेर-ए-गौर पेश-ए-खिदमत --


  =1=
मैंने कब माँगी थी उम्र जलवों में बसर 
साथ उसका छूटा तो ये हाल है अब
अजनबी शहर हो और जेब में पैसे भी नही

=2=
जब बुलंदी पे था तो हजारों हाथ उठे
गर्दिश-ए-दौराँ में सब साथ छोड़ चले
दोपहर के धूप में साया भी सिमट जाता है

=3=
तेरे चेहरे में थी क्यूँ समुंदर सी गहराई
आँख से तेरी सूरत टपक कर लब पे पड़ी
आब-ए-बहर नमकीन ही तो लगता है

=4=
लोग कुछ ढूँढते जब भी इस गली आयें
क्यूँ मेरे घर के आस्ताँ पे ठहर जायें
मेरी हाथों में लकीरो के सिवा कुछ ना था

=5=
वो कल ताउम्र साथ चलने का दम भरता था
आज कोठी के साये में मेरी झोपड़ी खटकती है
मखमली चादर पे टाट के पैबंद लगाये नही जाते  

=6=
वो मेरे साथ था तो सेहरा मे अब्र सा एहसास
बिछड़ गया तो चेहरा भी मुरझाने लगा
शजर से साख टूट जाये तो पत्ते भी सूख जाते हैं


==7==
किसी के हसरतों का कत्ल कर डोली सजा ली
हम उनके हाथों की सुर्खी का शबब पूछते रहे
शहर में उसके दस्त-ए-हिना का रिवाज है यारों 

==8== 
रात की तन्हाई में ये सिसकियाँ किसकी है
मजलिस में तो वो शख्स मुस्कुराता मिला था
सूरज की रोशनी में ओस की बूँदे काफूर हो जाती है

सोमवार, 5 सितंबर 2011

ये दम किसमें है


तुझसा अंदाज-ए-बयाँ, ये दम किसमें है
तेरी बज्म से उठ जायें
, ये दम किसमें है

तुमने कुछ कहकर मेरी आबरू रख ली
तुझसे फरियाद करें, ये दम किसमें है

दुनिया दीवानो को पागल करार देती है
खुद ही आशियाँ जलायें, ये दम किसमें है

पड़ा था कब्र पर फिर भी आँखे खुली रही
“काफिर” जैसी हसरतें, ये दम किसमें है